संगोल को प्राचीन समय से ही राजदंड के रूप में जाना जाता है, संगोल शासक को प्रजा के प्रति अपने कर्तव्यों का निरंतर बोध करने हेतु धारण करवाया जाता था

प्राचीन समय में मौर्य साम्राज्य (322 - 185 ईसा पूर्व), गुप्त साम्राज्य (320 - 550 ईस्वी) एवं चोल साम्राज्य (907 - 1310 ईस्वी) में भी इसके उपयोग के प्रमाण इतिहास मे मिलते हैं।

संगोल को प्राचीन समय से ही राजदंड के रूप में जाना जाता है, संगोल शासक को प्रजा के प्रति अपने कर्तव्यों का निरंतर बोध करने हेतु धारण करवाया जाता था

भारत में संगोल का इतिहास प्राचीन चोल साम्राज्य से जुड़ा है। चोल साम्राज्य के समय शासक इसको धारण करते थे और  सत्ता हस्तांतरण के समय नया शासक इसको धारण करता था।

संगोल शब्द की उत्पत्ति तमिल भाषा के सेम्मई शब्द से हुई है जिसका अर्थ होता है धर्मपरायण या न्याय प्रिय होता है। यह शासक को उसके अडिग न्याय और शासन का बोध कराता है।

आधुनिक भारत में संगोल का इतिहास भारत की स्वतंत्रता से जुड़ा हुआ है, पंडित जवाहर लाल नेहरू को अंग्रेजो द्वारा सत्ता हस्तांतरण के स्वरुप संगोल दिया गया था

वर्तमान संगोल का निर्माण वुम्मिदी ऐथिराजुलू (96 वर्ष) और वुम्मिदी सुधाकर (88 वर्ष) ने मिलकर किया था, संगोल चांदी से बनाया गया एवं इसके ऊपर सोने की परत चढ़ाई गयी थी।

संगोल की बनावट की बात करें तो इसकी ऊंचाई 5 फ़ीट है तथा इसके शिखर पर नंदी जी विराजमान है, हिन्दू शैव परंपरा में नंदी को समर्पण का प्रतीक मन गया है।

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