केदारनाथ धाम खुलने की तिथि 2023 l Kedarnath Temple Opening Date 2023

इस लेख में हम आपको केदारनाथ मंदिर के कपट खुलने की तिथि 2023 (Kedarnath Temple Opening Date 2023) एवं केदारनाथ के स्वर्णिम इतिहास के बारे में विस्तार से बताएँगे l केदारनाथ धाम हिन्दुओं का बहुत ही महत्वपूर्ण एवं पवित्र धार्मिक एवं तीर्थ स्थल है। यह मंदिर भगवान शिव से जुड़ा पूजा स्थल है। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग हैं जिनमे से केदारनाथ भी एक हैं, केदारनाथ 11वे ज्योतिर्लिंग हैं। भगवान शिव के केदार स्वरुप के 5 भाग हैं जिन्हें पंच केदार कहते हैं तथा ये सभी अलग अलग स्थानों पर विराजमान हैं। केदारनाथ धाम उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग में स्थित है। केदारनाथ धाम लगभग 400 वर्षों तक बर्फ के निचे दबा रहा। ये मंदिर अपने आप में एक बहुत ही चमत्कारिक तीर्थ स्थल है, 2013 में उत्तराखंड में आयी भीषण बढ़ की तबाही में भी केदारनाथ मंदिर बिलकुल सुरक्षित बचा रहा जबकि आस पास बढ़ से चरों तरफ तबाही ही तबाही थी l

2023 में कब खुलेंगे कपाट – Kedarnath Temple Opening Date 2023

प्रति वर्ष कार्तिक माह की शुरुआत में प्रथम (पड़वा) तिथि अक्टूबर के अंत में या नवंबर के शुरुआत (October – November) में जैसे ही सर्द ऋतु की शुरुआत होती है केदारनाथ धाम के कपाट बंद कर दिए जाते हैं और आने वाले बैसाख माह (अप्रैल) में फिर से खोल दिए जाते है और पूरे विधि विधान से पूजा अर्चना शुरू हो जाती है।
महाशिवरात्रि पर पंचांग के अनुसार तिथि एवं नक्षत्र आदि की गणना करने के बाद मंदिर के कपाट खुलने के समय की घोषणा की जाती है।
इस वर्ष शनिवार, 25 अप्रैल 2023 में केदारनाथ मंदिर के कपाट खुलेंगे।

केदार नाथ मंदिर के कपाट बंद क्यों होते हैं – Why Kedarnath Temple get Closed In November

नवम्बर से अप्रैल के बीच स्वयं भगवान शिव भी केदारनाथ मंदिर छोड़कर दूसरे स्थान पर चले जाते हैं। मान्यता के अनुसार जग के कल्याण के लिए भगवन शिव इस समय हिमालय में जाकर ध्यान और तपस्या में लीं हो जाते हैं। मंदिर के कपाट बंद होने के समय भोले नाथ को भी पालकी सजाकर उसमे ले जाया जाता है। अप्रैल में कपाट खुलने के समय पर भगवान भोलेनाथ को यहाँ पर फिर से विराजमान किया जाता है।

केदारनाथ मंदिर हिमालय में केदार घाटी में स्थित है यह स्थान उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में आता है। इस क्षेत्र में अत्यधिक सर्दी होती है। सर्दी के दिनों में यहाँ पर बहुत बर्फ पड़ती है जिससे सर्दी के मौसम में यहाँ बहुत अधिक ठण्ड हो जाने के कारण श्रद्धालुओं का आना वर्जित होता है। सर्दियों के मौसम में यहाँ पर इतनी अधिक बर्फ पड़ती है कि मंदिर पर बर्फ की कई परतें चढ़ जाती हैं। इस समय पर श्रद्धालुओं का मंदिर तक पहुंचना बहुत ही मुश्किल होता है। यहाँ रुकना रहना भी सर्दी के इन दिनों में बहुत ही कठिन हो जाता है।

Kedarnath Temple Opening Date 2023

History Of Kedarnath Temple – केदारनाथ मंदिर का इतिहास

केदारनाथ मंदिर के इतिहास की बात करें तो इसका इतिहास काफी पुराना है। मंदिर का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। मान्यताओं के अनुसार महाभारत युद्ध के पश्चात् पांडवों को अपने ही हाथो से युद्ध में अपने सगे सम्बन्धियों के वध से बहुत आत्मग्लानि हुई। इसे उनको लगा कि उनसे बहुत बड़ा पाप हुआ है और इसी पाप के प्रायश्चित के लिए वो लोग भगवान शिव की खोज में निकल गए। शिव शंकर पांडवों से नहीं मिलने की इच्छा जताते हुए काशी से पहाड़ों में विचरण के लिए निकल गए भगवान शिव को खोजते हुए पांडव जब हिमालय पर्वत पर घूम रहे थे और घूमते हुए केदार घाटी में पहुंचे तब उनकी भेंट यहाँ पर भगवान् शिव जी से हुई जो कि एक बैल के रूप में प्रकट हुए थे। भगवान शिव के बैल रूप में ही पांडवों ने उनको पहचान लिया। इसके पश्चात् भगवान शिव यही अपने बैल रूप में अंतर्ध्यान हो गए और अपने इसी स्वरुप में वो 5 अलग अलग जगह प्रकट हुए। केदारनाथ में उनका कूबड़ केवल कूबड़ प्रकट हुआ जो कि आज केदारनाथ मंदिर में गर्भ गृह है, भगवान शिव शंकर ठीक इसी जगह धरती में समाये थे।

उनके शरीर का एक भाग नेपाल में प्रकट हुआ, एक भाग रुद्रनाथ, एक भाग मध्य महेश्वर में प्रकट हुआ और इन्ही पपंचो भागो या जगह को संयुक्त रूप में पंच केदार कहा जाता है। कुछ शोध के अनुसार केदारनाथ धाम लगभग 400 वर्षों तक बर्फ में दबा रहा और यहाँ पर बर्फ की नदी होती थी फिर भी यह आज तक सुरक्षित है। अगर बात करें वर्तमान केदारनाथ मंदिर के निर्माण की तो इसके निर्माण के बारे में अलग अलग प्रकार की मान्यताएं हैं।
कुछ मान्यताओं के अनुसार केदारनाथ धाम का निर्माण (जीर्णोद्धार) आदि गुरु शंकराचार्य ने 8वीं शताब्दी में करवाया, इसके हिसाब से मंदिर लगभग 1200 वर्षों से भी अधिक पुराना है।
दूसरी मान्यता के अनुसार केदारनाथ मंदिर का निर्माण दूसरी शताब्दी में मालवा के राजा भोज ने करवाया था। यह मान्यता अधिक प्रचलित नहीं है।

Panch Kedar – पंच केदार

भगवान भोलेनाथ बैल के रूप में ही जब केदारनाथ में अंतर्ध्यान हुए तो वो फिर 5 जगह अलग अलग प्रकट हुए। उनके धड़ से ऊपर का हिस्सा नेपाल में रुद्रनाथ में प्रकट हुआ और यही जगह आज पशुपतिनाथ मंदिर के रूप में प्रसिद्द है। उनके हाथ अर्थात बैल स्वरुप के अगले पैर तुंगनाथ में प्रकट हुए, यह स्थान उत्तराखंड रुद्रप्रयाग में ही है जो केदारनाथ से 88 किमी दूर है। भगवान भोलेनाथ के नाभि और पेट मध्य महेश्वर में प्रकट हुए, यह स्थान उत्तराखंड में गढ़वाल जिले के गौंडर गाँव में स्थित है। गढ़वाल क्षेत्र में ही सुरम्य उर्गम घाटी में कल्पेश्वर में शिवशंकर के तलवे प्रकट हुए और केदारनाथ में भोलेनाथ का कूबड़ प्रकट हुआ। ये पांचों स्थान भगवान भोलेनाथ के मंदिर के रूप में प्रसिद्द हैं। इन्ही पांचों स्थानों को संयुक्त रूप से पांच केदार कहा जाता है। पांच केदार के दर्शन का अपना अलग ही महातम्य होता है।

किसने बनवाया केदारनाथ मंदिर – Who Built Kedarnath Temple

मान्यता के अनुसार जब भगवन शिव अपने दिव्य बैल स्वरुप में केदारनाथ में अंतर्ध्यान हुए तो यहाँ पर उनका कूबड़ प्रकट हुआ और इसी स्थान पर पांडवों ने उनकी पूजा अर्चना करते हुए उनका मंदिर स्थापित किया और तभी से शिव शंकर भगवान यहाँ स्वयंभू रूप में विद्यमान है। कुछ लोगों का मानना है कि दूसरी शताब्दी में मालवा के राजा बोज ने यहाँ मंदिर की स्थापना करवाई, लेकिन जब सवाल आता है की यहाँ इतने दुर्गम स्थान पर मंदिर बनवाने की प्रेरणा उनको कैसे मिली तो इस बारे में भी अलग अलग कहानियां हैं
दूसरी मान्यता के अनुसार 8वीं शताब्दी में आदि गुरु शंकराचार्य जी ने इस मंदिर को बनवाया, यह मान्यता अधिक प्रचलित है। इसके हिसाब से मंदिर 1200 वर्षों से भी अधिक समय पुराण है और कई प्रकार की आपदाओं और भीषण त्रासदियों को झेलने के बाद भी सुरक्षित है। 400 वर्षो से अधिक समय तक बर्फ में भी दबा रहा और 2013 में इसी क्षेत्र में आयी भीषण बढ़ में भी मंदिर सुरक्षित रहा। ये सभी घटनाये इस मंदिर को अद्भुत बनती हैं और इस मंदिर की ऐसी महिमा ही भक्तों को अपनी तरफ आकर्षित करती है।

Kedarnath Temple Opening Date 2023
Kedarnath Temple 2013 fluid , Image source – google

केदारनाथ मंदिर कहाँ स्थित है – Where Is Kedarnath Temple Situated

केदारनाथ मंदिर ऋषिकेश से 221 किमी दूर हिमालयी गढ़वाल क्षेत्र के रुद्रप्रयाग में स्थित है। यह 12 ज्योतिर्लिंग एवं पंच केदार का एक प्रमुख ज्योतिर्लिंग है। साथ ही यह गंगोत्री, यमुनोत्री एवं बद्रीनाथ को मिलाकर जो छोटी चारधाम यात्रा होती है उसका भी हिस्सा है। यह एक पर्वतमाला पर स्थित है जिसे केदार घाटी भी पुकारा जाता है।

कैसे पहुंचें केदारनाथ – How To Reach Kedarnath

सड़क मार्ग से हम केवल गौरी कुंड तक जा सकते हैं।गौरी कुंड से 14 किमी की दूरी पर केदारनाथ मंदिर स्थित है। गौरीकुंड के आगे किसी वाहन योग्य रास्ता नहीं है। गौरी कुंड के बाद 14 किमी का आगे का रास्ता तय करने के लिए या तो पैदल यात्रा या फिर टट्टू की सवारी की जा सकती है, साथ पालकी में बैठकर जाने का भी विकल्प है। लेकिन अपने ईष्ट के दर्शनों के लिए पैदल यात्रा करके जा ही सबसे अच्छा विकल्प है अगर किसी तरह की कोई शारीरिक परेशानी है तो l
केदारनाथ जाने के लिए अगर रेलमार्ग की बात करें तो ऋषिकेश सबसे आखिरी स्टेशन है। यहाँ से आगे का सफर सड़क मार्ग से तय करना होता है।

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FAQ – केदारनाथ धाम खुलने की तिथि 2023 l Kedarnath Temple Opening Date 2023

Q- 2023 में कब खुलेंगे केदारनाथ मंदिर के कपाट ?

Ans – महाशिवरात्रि पर पंचांग के अनुसार तिथि एवं नक्षत्र आदि की गणना करने के बाद मंदिर के कपाट खुलने के समय की घोषणा की जाती है।
इस वर्ष शनिवार, 25 अप्रैल 2023 में केदारनाथ मंदिर के कपाट खुलेंगे।

Q- केदारनाथ मंदिर कहाँ स्थित है?

Ans – केदारनाथ मंदिर ऋषिकेश से 221 किमी दूर हिमालयी गढ़वाल क्षेत्र के रुद्रप्रयाग में स्थित है। यह 12 ज्योतिर्लिंग एवं पंच केदार का एक प्रमुख ज्योतिर्लिंग है। साथ ही यह गंगोत्री, यमुनोत्री एवं बद्रीनाथ को मिलाकर जो छोटी चारधाम यात्रा होती है उसका भी हिस्सा है। यह एक पर्वतमाला पर स्थित है जिसे केदार घाटी भी पुकारा जाता है।

Q- कैसे पहुंचें केदारनाथ?

Ans – सड़क मार्ग से हम केवल गौरी कुंड तक जा सकते हैं।गौरी कुंड से 14 किमी की दूरी पर केदारनाथ मंदिर स्थित है। गौरीकुंड के आगे किसी वाहन योग्य रास्ता नहीं है। गौरी कुंड के बाद 14 किमी का आगे का रास्ता तय करने के लिए या तो पैदल यात्रा या फिर टट्टू की सवारी की जा सकती है, साथ पालकी में बैठकर जाने का भी विकल्प है। लेकिन अपने ईष्ट के दर्शनों के लिए पैदल यात्रा करके जा ही सबसे अच्छा विकल्प है अगर किसी तरह की कोई शारीरिक परेशानी है तो l
केदारनाथ जाने के लिए अगर रेलमार्ग की बात करें तो ऋषिकेश सबसे आखिरी स्टेशन है। यहाँ से आगे का सफर सड़क मार्ग से तय करना होता है।

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